पापा को बचाना है - (Shrutika Navale) श्रुतिका नवले - (9 Grade) कक्षा ९ - (Pune, India) पुणे, भारत
"स्नेहा बेटा, जल्दी घर आना। उसकी माँ चिल्लाई, "हाँ, माँ।" इतना कहकर स्नेहा उछलती, कूदती सड़क पर स्कूल की ओर चली गई। जाते समय उसने देखा कि पेड़ के पीछे तीन आदमी आपस में बातें कर रहे थे। उसने उन्हें नजरअंदाज करने की कोशिश की, लेकिन जब उसने अपने पिता का नाम सुना तो वे उनकी ओर देखने लगी।
"अरे वो श्रीकांत मिश्रा तो बता ही नहीं रहा। अब क्या करें?" पहला बोला। "उसकी कोई लड़की थी ना?" दूसरा पूछा। "मैं तो फिर से अपहरण नहीं करने वाला। सारा काम मुझे ही थमा देते हैं, तुम तो कामचोर जो ठहरे।" पहला उबकर दोनों की ओर देखकर बोला।
"उबकर बोलने की और अपहरण की जरूरत नहीं है।" तीसरे ने एक छोटा बक्सा हाथों में उछलते हुए कहा। "फिर तू ही बता कैसे उससे वो पासवर्ड उगलवाएं। समय बहुत कम है हमारे पास।" दूसरे ने चिंता के भाव से कहा।
"अरे! हमें केवल यह कहना है कि 'हमने तुम्हारी बेटी का अपहरण कर लिया है।' और अगर वह बेटी से प्यार करता होगा तो बता देगा वरना हम उसे भी मार डालने वाले हैं।" तीसरे ने बाकी दोनों को चौंकाते हुए कहा।
"लेकिन हमें अभी भी पासवर्ड नहीं मालूम है ना?" पहले ने तीसरे से पूछा। "हाँ, हमारे साथियों को एएमएस का एक और सदस्य मिल गया हैं। मुझे अभी कुछ मिनट पहले मैसेज मिला है और वैसे भी ये श्रीकांत मिश्रा बहुत जिद्दी है। मुझे नहीं लगता कि वह हमें बताएगा।" तीसरे की इस बात पर दोनों सहमत हो गए।
"हाँ, पाँच दिन हो गए और बुरी तरह पीटने पर भी उसने विख्यात स्वामी की लैब का पासवर्ड नहीं बताया।" इतना सुनकर तीनों वहाँ से गायब हो गए जैसे उनके पास कोई जादुई दरवाजा हो।
स्नेहा यह सब सुनकर डर गई। उसकी माँ ने तो उसे बताया था कि उसके पापा हमेशा की तरह 'मिशन' पर गए थे। उसके पिता क्या काम करते हैं? उनको अपहरण क्यों किया? अब मैं क्या करूँ? स्नेहा का मन सवालों से भरा था। वह इन सब से अनजान थी। उसे इस बारे में कोई खबर नहीं थी।
तभी बंसू अपने साईकिल पर जा रहा था पर स्नेहा को देखकर रुक गया, "अरे, तू तो श्रीकांत की बिटीया हैं ना? अच्छा हुआ तू यहाँ ही मिल गई । तेरे माँ के लिये किसी एएमएस से खत है।"
बंसू स्नेहा के होतों में खत दे कर चला गया। स्नेहा वे खत को देखती ही रहा ती है।
" क्या मुझे इसे खोलकर पढ़ना चाहिए? स्कूल के लिए भी देर हो रही हैं और वे लोग भी गायब हो गए हैं।" स्नेहा खुद से ही बाते करने लगती हैं।
"एक दिन स्कूल नहीं जाऊंगी तो कुछ नहीं होगा पर मुझे इस एएमएस का राज़ जाननाही होगा।" यह कह कर वे खत खोल कर पढ़ने लगती है।
‘हम एएमएस,
आपको एक दूःखत समाचार देना चहाते हैं। श्री श्रीकांत मिश्रा हमारें सब से होनार सदस्य का कुछ दिनों पहले अपहरण हो गया हैं। और उनके बचने की संभावना कम हैं। हम उन्हें बचाने की बहुत कोशिश कर रहे है-'
"तो उन्होन सचमें पापा को.
.. नहीं वे मेरे पापा को नहीं मार सकते " स्नेहा और भी चंतित हो जाती हैं। वे उस जगह की और देखती हैं जहा वो तीन लोग बाते कर रहे थे ।
"पापा को तो मैं बचा के ही रहूॅंगी" स्नेहा उस जगह जाती हैं. उन पेड़ों के पिछे जाती है। तभी उसके निचे की जमीन हील ने लगती हैं। वे किसी झाडी में डर के छुप जाती हैं। और उसके ही सामने ही जमीन एक गुफा में बदल जाती हैं। और वे तिन लोग उसमें से बाहर निकलते हैं। गुफा वापस से जमीन में बदल जाती है।
"बॉस ने हमें क्यों बुलाया होगा? पहला पूछता है।
उसे छोड़ो मुझे बॉस पर गुस्सा आ रहा हैं। उन्हेंने हमें उसे मारने क्यों नहीं दिया? जबकि अब वे हमारे किसी काम का नहीं हैं। तिसरा निराश होकर हाथ में पकड़ा हुआ बक्सा फेंक देता हैं।
"शांत हो जाओ, हमें देर हो जाएगी, चलो।" दूसरा उन्हें खींचकर ले जाता हैं। और इतने में वे बॉक्स वहाँ भूल जाते हैं।
आस-पास कोई न होने पर स्नेहा ने बक्सा उठाया और जब बक्सा खोला तो गुफा भी खुल गई। स्नेहा डर गई और उसने बक्सा ज़मीन पर फेंक दिया।
"उनके आने से पहले मैं पापा को लेकर चली जाती हूँ." इतना कहकर वह गुफा के अंदर चली जाती है। गुफा के अंदर कई दरवाजे थे। भूलभुलैया की तुलना में गुफा बिल्कुल भी अलग नहीं थी। चलते समय उसे एक दरवाजा थोडा खुला दिखा। उसने दरवाज़ा खोलकर देखा कि उसके पिता घुटनों के बल बैठे थे। उनके पूरे कपड़ों पर खून लगा हुआ था। जो उसने अपने हाथो से कुछ दिन पहले प्याक किया था।माॅं ने साफ सूदरा धूल के दिया था। उनकी आँखें मुश्किल से खुली थीं। और हाथ, पैर जंजीरों से बंधे हुए थे। उनके पास एक लोहे का डन्डा पड़ा था, शायद उनपर उसका इस्तेमाल किया होगा।
स्नेहा आँसू से भरी आंखों से और धीमी आवाज में अपने पिता को पुकारा "पापा..."
"स्नेहा तू यहाँ.. तु... यहाॅं से चली जा! बेटा चली जा!" स्नेहा के पापा खड़े होने की कोशीष करते हुआ स्नेहा को चेतावनी देते हैं।
"नही पापा " स्नेहा, इतना कहकर जंजीर को तोडने के लिए कुछ ढूंढने लगी। जबकि उसके पिता कहते रहे,"चले जाओ!" कमरे के बिल्कुल कोने में उसे एक हथौड़ा दिखाई दिया। उसने उन जंजीरों को तोड़ दिया जो उसे दीवार से जोड़ रख रही थी।
"आओ पापा जल्दी चलो-" कुछ कदमों की आहट सुनी और स्नेहा चुप हो गई। वे दोनो जल्दी से दूसरे कमरे के अंदर छूप गए। जब कुछ देर बाद, बात करने की आवाज़ और कदमों की आहट फीके पड़़ गए, स्नेहा और उसके पिता तेजी से सीढियों पर भागे। स्नेहा के पिता कमजोर होने के कारण सीढी़ पर लड्खडा गए और ठीक उसी समय सीढ़ी पर उन्होंने उन तीन लोगों को स्नेहा के पिता का नाम चिल्लाते हुए सुना।
"देखो श्रीकांत वहाँ है।" एक चिल्लाया।
"भागो पापा।" यह कहते हुए स्नेहा ने अपने पिता को खींच कर सुरक्षित रूप से गुफा से बाहर निकाल दिया। "रुक। रुक तू , में तुम दोनों को नहीं छोड्गा।" आवाजें करीब आ रही थी। जैसे की वे तीन लेग गुफा से बाहर आने लगे ।
स्नेहा ने जलदीसे बक्सा जमीन से उठा कर बंद कर दिया। जिसे वे तीनों अंदर बंद हो गऐ।
"वाह, स्नेहा बेटा मुझे लगा हम दोने फंस जाएँगे पर तुम्हने बचालिया।" उसके पिता ने स्नेहा के सिर पर से हात रख कर कहा।
"लेकिन पिताजी, वे कौन थे? उन्होंने आपका अपहरण क्यों किया? और एएमएस क्या है? स्नेहा अपने पिता से पूछती हैं।
"एएमएस एक गुप्त संगठन है और मैं इसके बारे में अधिक नहीं बता सकता। और हमारे पास श्री विख्यात स्वामी की लैब में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी थी और दूसरे देश जानना चाहते थे इसलिए उन्होंने लैब का पासवर्ड जानने के लिए मेरा अपहरण कर लिया ।" उसके पिता ने समझाया।
"और मुझे कहना होगा कि मेरी एक बहादुर बेटी ने मुझे बचा लिए। मुझे तुम पे बहुत गर्व है।"
"आपकी ही तो बेटी हूँ।"

